Astha Singhal

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कण कण में भगवान #प्रेरक

शार्ट स्टोरी चैलेंज 

कहानी  - कण कण में भगवान
जॉनर-  प्रेरक

नंद किशोर त्रिपाठी, एक बहुत ही प्रख्यात पंडित थे। कृष्ण भक्त और बहुत ही सरल स्वभाव के इंसान। वेद, पुराण, हस्तरेखा और कुंडलियों के ज्ञाता थे। दिन भर शहर के भव्य कृष्ण मंदिर में सेवा करते थे। वहीं से उन्हें आमदनी भी हो जाती थी। निम्न साधनों के साथ साधारण सी ज़िन्दगी जी रहे थे। 

उनके घर में जो भी बनता था , सबसे पहले उसका भोग मंदिर जाकर भगवान को चढ़ाते थे। भगवान को भोग चढ़ने के बाद ही परिवार जन खाते थे। उनकी इस आदत से उनके बच्चे बहुत परेशान थे। उनकी पसंद की हर चीज़ को पहले नंद किशोर जी मंदिर ले जाकर भोग लगवाते और फिर ही बच्चों को खाने देते। 

एक दिन बहुत फर्माइश पर नंद किशोर जी ने अपने बेटे के लिए लड्डू बनाए। पर जैसा की परंपरा थी, वह लड्डू का थाल उठा मंदिर जाने लगे। उनका छोटा बच्चा रोने लगा। बालक मन क्या जाने भोग क्या होता है। उसे तो अपने पसंद के लड्डू उसी समय खाने थे। सबने उन्हें समझाया कि केवल कुछ लड्डू भगवान के भोग के लिए ले जाएं और बाकी घर पर रहने दें। जिससे छोटा बेटा भी अपने मन को शांत कर ले। पर नंद किशोर जी नहीं माने। 

फिर क्या था, छिड़ गई घर में महाभारत। उनकी पत्नी ने गुस्से से कहा,"ठीक है, ये सारे लड्डू आज आप अपने भगवान को खिला कर दिखाओ। आप कहते हो ना कि भगवान आपका भोग स्वीकार करते हैं। तो आज ये लड्डुओं का थाल खत्म हो जाना चाहिए।" 

नंद किशोर जी को भी गुस्सा आ गया। उन्होंने भी अहंकार भरे स्वर में कहा, "बिल्कुल, भगवान मेरा पूरा भोग स्वीकार करेंगे, देखना तुम सब।" 

ये कह कर नंद किशोर जी लड्डुओं का थाल ले मंदिर पहुंचे। पूरे मंदिर में इस बात का शोर मच गया कि आज भगवान पंडित नंद किशोर की थाली के सारे लड्डू स्वीकार कर लेंगे। 

पंडितजी ध्यान लगा कर बैठ गए। कुछ समय पश्चात उन्होंने अपनी आंखें खोलीं। उन्हें लगा कि अबतक प्रभु आकर लड्डू खा गये होंगे। पर उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक भी लड्डू नहीं खत्म हुआ। पर लड्डू की थाल के इर्दगिर्द चींटियां घूम रहीं थीं। 

पंडितजी ने मंदिर के कर्मचारियों को बुला सारी जगह को धुलवा दिया। और थाल को ऊंचाई पर रखवा दिया।  और वह फिर से प्रभु का सिमरन करते हुए ध्यान लगा कर बैठ गए। 

कुछ समय पश्चात उन्होंने देखा कि एक भिखारी जिसे शायद बहुत तेज़ भूख लग रही थी, उसने लड्डुओं की थाल की तरफ अपना हाथ बढ़ाया। पंडित नंद किशोर तिलमिला उठे और बोले,"मूर्ख! ये भोग पहले भगवान के लिए है। हाथ भी मत लगाना।" 

सुबह से दोपहर‌ हो चली थी। पर थाल में से एक भी लड्डू कम नहीं हुआ। पंडितजी का सब्र जवाब दे रहा था। तभी अचानक एक -दो कुत्ते पहरेदार को चकमा देकर अंदर मंदिर में आ गए। इससे पहले कि वह लड्डुओं की थाल पर झपटते, पंडित नंद किशोर ने‌ तुरंत थाल उठा ली और पहरेदार ने डंडे मार मार कर कुत्तों को बाहर‌ किया। 

शाम तक भी जब प्रभु ने भोग के लड्डू नहीं चखे तो पंडित नंद किशोर को बहुत ठगा सा महसूस हुआ। वह निराश हो वहां से उठे और थाल उठा चल दिए। बाहर आ उन्होंने गुस्से में थाल को कूड़ेदान के पास फैंक दिया और घर चले गए। 

आज उन्हें ऐसा लगा कि ताउम्र उन्होंने प्रभु की भक्ति की, और बदले में भगवन ने‌ उन्हें ये सिला दिया। उनका बेटा सुबह से लड्डू खाने के लिए मचल रहा था। क्या चला जाता प्रभु का जो आकर लड्डू खा लेते तो? मेरे विश्वास, श्रद्धा को यूं एकपल में तोड़ दिया। ये सब सोचते सोचते वह गहरी नींद में सो गये। 

स्वप्न में उन्हें प्रभु ने दर्शन दिए और बोले,"वत्स नंद किशोर, आज तुम्हारे बनाए लड्डू सच में बहुत स्वादिष्ट थे। पर उन तक पहुंचने में मुझे रात लग गई।" 

पंडित नंद किशोर ने‌ हैरान होकर पूछा," पर प्रभु, आपने लड्डू कब खाए? सारे लड्डू ज्यों के त्यों ही तो‌ रखे रहे। मैंने कितनी प्रतीक्षा की आपकी।" 

प्रभु ने हंसते हुए कहा,"जब तुमने लड्डू कूड़ेदान के पास फैंक दिए तब मुझे खाने का अवसर‌ मिला।" 

अब नंद किशोर थोड़ा उत्तेजित होते हुए बोला,"भगवन, यदि आपको लड्डू खाने ही थे तो सुबह से आपको भोग लगाने के लिए आपके समक्ष ही तो रखे थे। तब क्यों नहीं खाए आपने लड्डू? तब ही खा लेते आप तो मेरा बेटा भी लड्डू खा पाता।" 

"नंद किशोर" भगवन स्नेह से बोले, "मैं तो आया था तुम्हारे हाथ के स्वादिष्ट लड्डू चखने। पर तुमने ही मुझे हर बार भगा दिया।" 

अब नंद किशोर उलझन में पड़ गया कि प्रभु कब आए थे भोग चखने? भगवन उसकी उलझन सुलझाते हुए बोले, "पहले मैं चींटियों का रूप धारण करके आया, तब तुमने मुझे भगा दिया, फिर मैं भूखे भिखारी के रूप में आया, तब भी तुमने मुझे खाने से रोक दिया, अरे! मैं तो कुत्ते के रूप में भी आया था, पर कितना पीटा सब ने। आखिरकार कचरे के पास जब तुमने लड्डू फैंके, तब पक्षी बनकर मैंने सारे लड्डू खाए।"

"हे भगवान! मुझे कैसे पता चलेगा कि आप वो सब रूप धर कर आ रहे हैं। इशारा तो किया होता प्रभु।" नंद किशोर सिर पकड़ कर बैठ गया। 

"तुम तो इतने ज्ञानी पंडित हो नंद किशोर! तुम्हें तो मालूम होना चाहिए कि मैं कण कण में व्याप्त हूं। हर इंसान, पशु पक्षी, कीड़े मकोड़े में मैं ही तो हूं। चारों तरफ मैं ही हूं , बस देखने के लिए नज़र चाहिए। एक बात और, मैंने कभी नहीं कहा कि खाना खाने से पहले मुझे भोग लगाओ। अरे! मैं अपने बच्चों को भूखा रख स्वयं पहले कैसे खा सकता हूं? तुमने अपने बेटे के लिए इतने प्यार से लड्डू बनाए थे। उसमें भी तो मैं विद्यमान हूं। उसे क्यों नहीं खाने दिए?" भगवान ने प्यार से पंडित नंद किशोर को अपनी बात समझा दी और अंतर्ध्यान हो गए। 

भगवन के जाते ही नंद किशोर की आंखें खुल गईं। आज उसकी मन की आंखें भी खुल गईं थीं।‌ अब उसे समझ में आ गया कि प्रभु उससे क्या कहना चाहते हैं। 

अगले दिन उसने अपने बेटे को बुलाया और प्यार से उसे अपने पास बैठा के लड्डू खिलाए। उसके बेटे ने जी भर लड्डू खाए और प्रसन्नता से अपने पिता को गले लगा वहां से चला गया। 

नंद किशोर भगवन की लीला पर गदगद हो उठा। आज पहली बार उसे खिलाते समय इतना सुकून मिला था। क्योंकि आज उसे यह ज्ञान हो गया था कि भगवन तो कण कण में व्याप्त हैं। हर इंसान, जीव जन्तु के अंदर व्याप्त हैं। उन्हें भोग लगाने के लिए अलग से थाल सजाने की आवश्यकता ही नहीं है। 

🙏
आस्था सिंघल
#शॉर्ट स्टोरी चैलेंज
#लेखनी



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2 Comments

Shnaya

02-Jun-2022 04:57 PM

👏👌

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Gunjan Kamal

18-Apr-2022 10:27 AM

शानदार👏👌👌👌👌👌👌

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